Friday, February 25, 2011

झूठी प्रशंसा की महिमा ..................शिव शंकर

महिलायें झूठी प्रशंसा की भूखी होती है ,अमूमन देखा जाता है की पुरुष अकसर महिलाओं को रिझाने के लिए उनकी झूठी तारीफ कर देते है और महिलायें अपनी प्रशंसा सुनकर फुले नहीं समाती ।
अभी कुछ ही दिनों की बात है एक हमारे मित्र ने हमें बताया की मेरी पुरानी प्रेमिका जो की 10 साल बाद मेरे सम्पर्क में आयी है ,10 साल तक उन दोनों में कोई सम्पर्क नहीं था न फ़ोन से न किसी भी माध्यम से क्योंकि शादी के बाद लडकी अपने परिवार के साथ पुणे में रहने लगी
लेकिन हमारे मित्र ने अंतरजाल (internet ) पे सर्च कर अपनी पुरानी प्रेमिका को ढूंढ़ निकाला और दोनों में चैटिंग के माध्यम से बाते हुई दोनों ने एक दुसरे को ईमेल किया और अपनी अपनी बातें एक दुसरे से शेयर की लड़की ने बात को आगे बढ़ाने के बजाय उसे पुरानी कहानी मान कर भूलने की सलाह दी ,लेकिन हमारे मित्र की झूठी प्रशंसा में फस कर वे रिश्ते को आगे बढ़ाने पर मजबूर हो गयी मित्र महोदय ने उनकी तारीफ में कहां की इतने सालो में मै तुम्हे भूल नहीं पाया ऐसा अकसर मेरे साथ (मित्र ) होता था की मैं अतीत की यादों में खो जाता और तुम हरदम मेरे पास ही होती थी ,बहुत चाहा की तुम्हें याद न करु, लेकिन मेरे दिल में तुम्हारे लिए एक अलग प्यार ,सम्मान था जो चाहते हुए भी मैं तुम्हें अपने दिल से नहीं निकाल पाया प्रिय
हलांकि मेरे मित्र के द्वारा कहीं बातो में सच्चाई नहीं थी वो शरारत बस अंतरजाल पर पुरानी प्रेमिका को सर्च किया और खोजने में सफल भी हो गया
अब ऐसी घटना अक्सर हमें देखने को मिल जाती है की महिलायें पुरुषों के ऐसी झूठी तारीफ में उलझ कर अपना भला बुरा भी नहीं सोच पाती और उनके झांसे में आ जाती हैं
समाज में अब ये बात आम हो गयी हैं की महिलाओं को अपनी बात मनवाना हो तो उनकी झूठी तारीफ बढ़ चढ़ कर किया जाये तो वो ख़ुशी से झूम जाती हैअब देखिये न प्रेमिकाओं को रिझाने में प्रेमी उसकी झूठी तारीफ करने में पीछे नहीं रहता रूठी पत्नी को मनाने में भी पति महोदय भी इसी झूठी प्रशंसा का सहारा लेते हैं और वे सभी महिलाओं को अपने पक्ष में करने में सफल भी हो जाते है
खैर ये तो रही रिश्ते को दूर तक ले जाने के लिए महिलाओं की झूठी तारीफ पुरुष समाज द्वारा किया जाना, लेकिन ये नुख्से तो आज ब्लॉग की दुनिया में भी देखने को मिल रहा है
ब्लॉग जगत में कुछ डा. महिला ब्लोगर है जो अपने द्वारा लिखे लेख पर प्रशंसा पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है उनके ब्लॉग पर आप जाते ही देखेगें की उनके लिखे लेख पर भारी मात्र में टिप्पणियाँ मिली हैं जिसमें आपको उस महान लेखिका के विपक्ष में कोई कमेन्ट नहीं मिलेगा ,कमेन्ट करने वाले अधिकांश आशिक मिजाज लोग गलत लेख पर भी बिना पढ़े वाह वाह करते पाए जाते है जिससे उस महिला लेखिका को बुरा न लगे
उनके कमेन्ट को पढकर महिला ब्लोगर प्रसन्न हो जाती है और उन्हें धन्यवाद कहती है ,पुरुष महोदय मुस्कराते हुए सोचते है झूठी प्रशंसा कर बेचारी को ख़ुशी दे दिया
लेकिन कुछ ऐसे पुरुष वर्ग भी है जो महिला ब्लोगर द्वारा लिखे लेख पर आपत्ति जताया और उसके विपक्ष में कमेन्ट किया लेकिन वो कमेन्ट महिला ब्लोगर को पसंद नहीं आया महिला ब्लोगर ने उस कमेन्ट को अभद्र कहते हुए कहा की ऐसे किये गये कमेन्ट मै अपने ब्लॉग पर नहीं प्रकाशित करुगी क्योकि उन्हें झूठी तारीफ सुनने की आदत जो हो गई है इसीलिए विपक्ष में की गई टिपण्णी उन्हें अभद्र लगती है
उस महिला ब्लोगर द्वारा एक पोस्ट लिखी जाती है और वो महिला पुरुष ब्लोगरो से अनुरोध करती है की उन्हें अगर मेरा लेख पसंद न आये तो वो मेरे ब्लॉग पर न आये क्योकि न पसंद करने वाले लोग मानसिक रूप से विकलांग है
अब ये बात तो सच लगने लगी है की महिलायें झूठी प्रशंसा की कायल होती है, उनके भले के लिए किया गया निंदा भी उन्हें बुरा लगता है वे अपनी गलती को सुधरने के बजाय उस सच बात को नकारते हुए अपनी झूठी प्रशंसा में मग्न हो जाती है महिलाओं को अपने हित में कही बातो को स्वीकारना चाहिए और अपने विवेक से काम लेते हुए लोगो के झूठी बातो में नहीं आना चाहिए महिलाओं को समझना चाहिए की जो वाह वाह झूठी करते है उनके तुलना में सच में की गई आलोचना करने वाले सही है

अब पुरुष वर्ग से ये अपील है की महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदले और उनकी झूठी तारीफ करने के बजाय सच को बया करे, जिससे महिलाये अपने अंदर की कमी को सुधार सके झूठी तारीफ से उसे ज्ञात ही नही होगा की उसके अंदर दोष क्या है ?
पुरुष वर्ग को आगे की पंक्तियों से सिख लेनी चाहिए जो इस प्रकार है-

भारती वांग्मय सदा से ही नारी की महानता व गुणगान करता रहा है सनातन ग्रंथो ने स्वीकारा हैं की बिना शक्ति के स्वयं शिव भी शव के समान हैं भारतीय समाज आज भी विद्वान् पुरुष को चरण स्पर्श का आदेश दिया जाता है वही गुरु व पिता कन्या को देवी मान कर पैर पूजता है

अत : पुरुष वर्ग इन बातो से सिख लेते हुए नारी का सम्मान करें, उन्हें भोग की वस्तु न समझते हुए सम्मान व इज्जत दें नारी पुरे समाज की जननी है उनके साथ छल -कपट दुखदायी है

Tuesday, February 22, 2011

आजा तुझको पुकारे मेरा देश रे.............शिव शंकर

आजा तुझको पुकारे मेरा देश रे.......
ओ मेरे मितवा ..........
ओ माइ फ्रेन्डवा ...........
जबसे गये तुम छोड‍‍ के मुझको।
हमारा इण्डिया याद करे तुझको।।
तोड के आजा,छोड के आजा..........
लन्दन का परिवेश रे ......
तुमने ही ये देश सुधारा
भारत को इन्डिया पुकारा
तेरी शिक्षा,तेरी भिक्षा
तन पर तेरा वेश रे....... आजा ......

हे बर्किघम पैलेस के चैकिदारों.........आ भी जाओ ..........बिना तुम्हारे,यहां पधारे.......... यह देश कण्ट्री नहीं बन सकता। बिना तुम्हारी दया के यह हिन्दुस्तान पूरी तरह इण्डिया नहीं बन सकता । हे मेरे फिरंगी भाई ! सन् 1947 से अब तक, हमारी याद क्यों न आई ?
अब तो आ ही जाओ ! हमारा इण्डिया , तुम्हारी दी हुई आजादी की, गोल्डन जुबली मना चुका। आपका बनाया कानून, आपकी बाट जोह रहा है। कम सून।
आपकी एजूकेशन पॉलिसी आइमीन शिक्षा नीति आपकी दी हुई डिग्रियां बांट रही है। आपके चेले चपाटी लिट‍्टी चोखा भी छूरी-काटा से खा रहे हैं। प्लीज कम....... मोस्ट वेलकम......... आइये और आकर हमारे इणडिया की गरीबी दूर कीजिए। वाह........ वाह.......... बहुत अच्छा........ काम हो रहा है मेरे भाई ! गोरो को भी पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन उनको इण्डिया में जरुर वापस बुलाया जायेगा ।आखिर वो अपनी मर्जी से थोडे ही गये थे ........ इसीलिए जाते जाते उन्होने अपने वापसी का इंतजाम कर लिया था ।
जैसे लग रहा है कि जिसे हम अपनी आजादी कह रहे थे वो....... ट्रान्सफर आफ पावर .......अर्थात कूर्सी की अदला बदली लग रहा है ........जैसे इण्डिया का शासन कूछ दिनो के लिए पट्टा पर दे दिया गया था।
तभी तो सब कानून गोरो वाला ही चल रहा है। कांग्रेस को सत्ता सैंपते समय गोरो ने कहा था .........मेरे कांग्रेसी बन्धुओं आप हमारा संविधान ले लो... । हमारा कानून ले लो....।आखिर इन्ही कायदे कानूनों से हमनें दो सौ साल तक राज किया तुम्हें भी हमारी तरह ऐश करना है तो नये कायदे कानून बनाने के झंझट में मत पडो.... नो .....।
अब देखिये ना हमारे देश मे स्वयं का कानून है ...........लेकिन गोरो के बनाये कानून आज भी हमारे देश मे चल रहे हैं। स्वामी भक्ति का ऐसा उदाहरण दुनिया के किसी भी इतिहास में नहीं मिल सकता हैं।
हर मजेस्टी क्वीन विक्टोरिया, एलीजाबेथ, लार्ड क्लाइव, जनरल डायर ही नहीं ..........जार्ज पंचम ने भी नहीं सोचा होगा कि उनके जाने के 50 साल बाद भी उन्हीं के कानून हिन्दुस्तान में हूकूमत कर रहें होगे।
नेता बन्धु कहते है क्या खराबी है इन कानूनों में............... ? खराबी ? ढूढते रह जाओगें........... यह अंग्रेजी कानूनों का ही कमाल है कि आज तक किसी भी बडे आदमी को सजा नहीं हुई।
अमां यार........ ये तो अच्छा ही हुआ कि........... सरकार ने अंग्रेजों का कानून नहीं बदला नहीं तो एक पंचवर्षीय योजना का सारा पैसा जेल बनवाने में ही खर्च हो जाता .........।
अंग्रेज ये जानते थे कि जिस कौम को नष्ट करना हो तो उसकी शिक्षा प्रणाली ही बदल दो.......... आहा हा .........स्कूलो कॉलेजों में अपने वंशजों को जीता जागता देखकर अंग्रेजों की आत्मायें गद् गद् हो रही होंगी ।
कुछ महान लोग कहेगें कि क्या यार वही आर एस एस वाली भाषा बोलते हो ...........अब कोई विदेशी सुदेशी नहीं हैं दुनिया एक दम पास आ गई हैं। आ रहा है ...........रोजगार.............. व्यापार .............सुख का संसार।
वाह रे मेरे यार........... क्या बात है .............अगर इण्डिया ने अंग्रेजों से फिर से वापस आने की पेशकश नहीं किया होता तो च, च, च, देश तबाह हो जाता........... अब तो ..........अब तो क्या ? अब चिन्ता की कोई बात नहीं है ।अब विदेशी कम्पनियां आयेगी और आते ही इण्डिया का सारा कर्जा चुका देगीं ..............अरबों डालर कर्जा .........और क्या ? अब हमें क्या एतराज है ? .........जब कोई पार्टी विदेशी कम्पनियों का विरोध नहीं कर रही है तो हम लोग काहे विंचिंया रहे है ? सभी पार्टियों की आत्मा एक है। झण्डा,बैनर अलग-अलग है। किसी को भी विदेशी सौदे से एतराज नहीं है क्यों.......? क्योंकि वे दिन लद गये जब कमिशन खाना देशद्रोह माना जाता था। हे विदेशी कम्पनियों देश से गरीबों को हटाओं............. आईमीन,...........गरीबी मिटाओं।
कौन कह सकता है कि अंग्रेज चले गये हैं। हमारे उठने-बैठने, खाने-पीने, सांस लेने में, जीवन की हर गतिविधि में अंग्रेज मौजूद हैं। कहां है अंग्रेज ? कहॉ नही है अंग्रेज..........? काला कोट पहनकर आदालत में ..........खाकी वर्दी पहनकर थाने में ..........लिप्तन की चुस्की लेता हर ड्रॉइंग रुम में.............. काला चोंगा पहनकर डिग्री बांटता है अंग्रेज.................... रेसकोर्स में घोडे की तरह हिनहिनाता है अंग्रेज.................. 31दिसम्बर की रात में डिस्को करता ..............भॉगडा करता,नशे में धुत ..............हर सडक पर है । अंग्रेज हर घर में केक काट रहा है। हैप्पी बर्थ-डे गा रहा है। अंग्रेज वेलेन्टाइन डे मना रहा है। लोकतंत्र अंग्रेजों का ..............कायदा कानून अंग्रेजों का ...........शिक्षा पद्दति अंग्रेजों की ........... भाषा भूषा अंग्रेजों की.............' कम से कम कपडे पहनो ' यह नारा लगा रहा है अंग्रेज ।
तभी तो मैं कह रहा हूं कि इतिहास में एक दिन ऐसा आयेगा जब आपको असली, खालिश और शुद्ध अंग्रेज सिर्फ हिन्दुस्तान में ही मिलेगें............... इंग्लैण्ड में नहीं...............।
सच में भाईयों अब सब जगह ही अंग्रेज दिखते हैं -
हमारे मम्मी डैडी मैं,
टू मिनट की मैगी मैं,
सबकी हेलो हाय में,
दूध की जगह चाय में,
बाप रे बाप............. सब जगह तो दिखता हैं .........
अंग्रेज.......... वाह -वाह अंग्रेज ही अंग्रेज..............


कुछ बात है कि हस्ती,मिटती नहीं हमारी ................
हमारी संस्कृति, हमारा धर्म, हमारे मानबिन्दु, हमारी परम्परायें हमारे जीवन की आधार हैं।
इनको हमें बचाना हैं।
भारत भव्य बनाना हे।

Wednesday, February 9, 2011

जनता के कठघरे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह




पहरेदार का चोर हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण होता है। आखिरकार पहरेदार पर कौन पहरा दे ? प्रधानमंत्री देश के सार्वजनिक धन का न्यासी है, मंत्रीपरिषद उसी का विस्तार है। मुख्य सतर्कता आयुक्त पर अतिरिक्त सतर्कता की जिम्मेदारी है। सरकार को जवाबदेह बनाने की संसदीय शक्ति बड़ी है बावजूद इसके भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया । राष्ट्मण्डल खेलों में अरबों का खेल हुआ । 2 -जी स्पेक्ट्म घाटालों से देश भौचक हुआ। आदर्श सोसाइटी भी घोटाला का पर्याय बनी । चावल निर्यात घोटाला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एलआईसी हाउसिंग सहित हर तरफ घोटालों की ही बाढ़ है। महंगाई, घोटालों के पंख लगाकर ही आसमान पहुंची हैं।
देश घोटालों के दलदल में है। सत्ताधीश छोड़ सब लुट रहे है। भ्रष्टाचार ही सत्यम है। आमजन हलकान हैं। यहां हर चीज बिकाउ है। राजनीति एक विचित्र उधोग है। थोड़ी पूंजी बड़ा व्यापार, कहीं भी, कभीं भी ।

विधायकी सांसदी के पार्टी टिकट के रेट हैं, मनमाफिक मंत्री बनाने के रेट हैं। सरकार गिराने बचाने, सदन में वोट देने, सदन त्याग करने के पुरस्कार हैं। केन्द्र सरकार तमाम घोटालों के घेरे में है। स्पष्टीकरण काम नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से
सरकार की नींद हराम है। जनता में थू-थू हो रही है। सो सरकार एक नए लोकपाल विधेयक की तैयारी कर रही है।

विद्वान प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह कई अंतर्विरोधों के शिकार हैं। वह सरल ह्दय गैरराजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन देश के राजप्रमुख हैं।
वह संवैधानिक दृष्टि से संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन वस्तुतः वह सोनिया गांधी के प्रति उत्तरदायी हैं। वह मंत्रिपरिषद के प्रधान हैं, लेकिन मंत्रिगण उनकी बात नहीं सुनते। वह स्वयं ईमानदार हैं, लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार पर कोई कारवाई नहीं कर सकते। वह अंतरराष्टीय ख्याति के अर्थशास्त्री हैं, लेकिन महंगाई जैसी आर्थिक समस्या के सामने ही उन्होंने हथियार डाले हैं। भ्रष्टाचार ने सरकार की छवि को बट्टा लगाया है। भ्रष्टाचार के चलते अंतरराष्टीय पर देश की छवि धूमिल हुई है, और सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा है।

प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के शासन काल में इतने बड़े- बड़े घोटालें हो गये और प्रतिष्ठित उद्योगपति रतन टाटा ने भी हमारे प्रधानमंत्री को बहुत ईमानदार करार दिया और कहा कि उनको परेशान नहीं करना चाहिए। ऐसे बहुत से प्रतिष्ठित लोग मिल जाएगे जो डॉ मनमोहन सिंह को ईमानदार और साफ सुथरे छवि वाले इंसान बताते हैं।

भारत जैसे विशालकाय देश में इतने बड़े तौर पर घोटालें हो रहे हैं और इन घोटालो में मंत्रीमण्डल के ही नेतागण शामिल हैं।
.प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अपने मंत्रिमंडल में शामिल भ्रष्ट नेताओं पर भी शक्ति नहीं देखा पा रहे है। कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त उन नेताओं पर उचित कारवायी न कर भ्रष्टाचारियों को श्रय दे रही है। तभी तो कॉमनवेल्थ और 2-जी स्पेक्ट्म मामले में शामिल अपराधियों पर कारवायी करने में इतना देर लगा जब तक अपराधी अधिकांश सबूत मिटा चुके थे।

भ्रष्टाचारियो को श्रय देना, अपराधियों को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें सुविधाएं देना क्या ये ईमानदारी है ?
डॉ मनमोहन सिंह नाम मात्र के प्रधानमंत्री बन कर सारे भ्रष्टाचार को देखते हुए किंकर्तव्यविमुख की तरह पड़े है। अपराधों को
देखते हुए भी कुछ न करने का साहस दिखाना भी एक अपराध है। अगर मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री कि नहीं सुनी जाती तो वे क्यो उस पद पर बने हुए है। उस पद पर बने रहकर वे अपनी छवी खराब कर रहे है। अगर वे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे है तो उन्हे अपने पद से स्वेच्छा से त्याग पत्र दे देना चाहिए, जो देश हित के लिए उचित होगा ।

डॉ मनमोहन सिंह के पहले शासन काल में विपक्ष के नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह को कठपुतली सरकार कहकर ये कहां था कि भारत के इतिहास में मनमोहन सिंह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री है। उनकी कही बात आज सच साबित हो रही है। जनता को ये एहसास हो गया है कि मनमोहन सिंह को मोहरा बनाकर शासन की बागडोर कोई और अपने हाथो में लेकर इन भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर उन्हे बढ़ावा दे रहा है, और देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहा हैं।
लोगों के सामने तो मनमोहन को सत्ता सौंप कर त्याग की मूर्ति बन गई सोनिया लेकिन इन भ्रष्टाचार में उनकी सहमति के बिना इतने बड़े घोटालों को अन्जाम ही नहीं दिया जा सकता था।
डॉं मनमोहन सिंह भी अब ईमानदार के श्रेणी में नहीं आते उनके शासन काल में जनता के पैसें को स्वीश बैंक में काले धन के रूप में सजाकर रखा जा रहा है और सरकार देखते हुए भी उसके खिलाफ कोई निर्णय नहीं ले रही है। अगर घुस लेना और देना अपराध है तो क्या भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर मंत्रिमंडल में बने रहकर उनके हर कार्य में सहायता करना अपराध नहीं है ?

2-जी घेटालों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की समस्याएं फिलहाल खत्म नहीं होने वाली हैं। कुछ मंत्री अपने बयान से इस मामले को दूसरे दिशा में मोड़ना चाहते है, जो अब संम्भव नहीं । कपिल सिब्बल सोचते हैं कि वह अपने इस चतुराई भरे तर्क से मनमोहन सिंह का बचाव कर लेगे कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में जिस बात का इशारा किया गया है
वैसा कुछ नहीं है और देश का धन किसी ने नहीं लूटा हैं। इस तरह कपिल सिब्बल ने मामलें को और उलझानें का काम किया, जिस कारण सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा कि वह न्यायिक जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस बारे में 21 जनवरी को जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की न्यायिक पीठ ने कहा कि मंत्री महोदय को अनिवार्य रूप से अपने उत्तरदायित्व के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए ।

वास्तव में सरकार द्वारा चुप्पी साधे रखना ही 2 जी मामले में वर्तमान राजनीतिक संकट की मूल वजह बना। यही वह कारण है कि अभी तक गतिरोध बना हुआ है और संसद का एक पूरा सत्र हंगामें की भेंट चढ़ गया । ईमानदार प्रधानमंत्री पर अब भारतीय जनता का गुस्सा तेजी से बढ़ रहा है, जो संभवतः हाल के भारतीय इतिहास में सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के मुखिया के पद पर बैठे हुए हैं।
अंधकारपूर्ण वर्तमान हालात में देश की जनता खिन्न और निराश है और वह अब एक ऐसे ईमानदार व्यक्ति से छुटकारा पाना चाहती है जो अपने आस पास के बेईमान लोगों पर अंकुश नहीं लगा सका । यह वही मनमोहन सिंह हैं जिन्हे एक समय जनता एक निःस्वार्थ और नैतिक व्यक्ति के रूप में देखती थी। कुछ ऐसे ही महाभारत में भीष्म भी थे। वह तब भी मौन रहे जब द्रौपदी का चीर हरण किया जा रहा था । दुःशासन द्वारा अपमानित होने के कारण द्रौपदी क्रुद्व हुई और उसने शासकों के धर्म के बारे में सवाल उठाए, लेकिन तब सभागार में बैठे राजपरिवार के किसी भी सदस्य ने उसे उत्तर नहीं दिया और हर कोई शांत बना रहा।

उस समय विदुर ने तिरस्कार भाव से मौन की अनैतिकता का सवाल उठाया और सभागार में बैठे लोगो को लताड़ लगाई। उस समय विदुर ने किसी अपराध के घटित होने पर आधा दण्ड दोषी को दिए जाने, एक तिहाई दंड सहयोगियों अथवा इस तरह के कृत्य में शामिल होनें वालों के लिए और शेष एक तिहाई दंड मौन रहने वालों के लिए बताया था। 2 जी घोटाले में हमारे प्रधानमंत्री की चुप्पी बहुत गहरे तक हमें मथने वाली अथवा परेशान करने वाली है।

सवाल यह है कि आवंटन नीति पर आपति उठाने के बाद प्रधानमंत्री चुप क्यों हो गए ? यही वह सवाल जिसका उत्तर भारतीय जनता अब जानना चाहती है। इस संकट में प्रधानमंत्री के मौन के अतिरिक्त एक अन्य विचलित करने वाला पहलू भी है। सफलता के संदर्भ में हमारी धारणा भी दांव पर लगी हुई है। हालांकि हम हमेशा से अपनी एक भद्दी सच्चाई को जानते रहे हैं। भारत में भ्रष्टाचार बच्चे के जन्म लेते ही आरंभ हो जाता है। आपको जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए किसी को रिश्वत देनी पड़ती है।
यह सिलसिला उसके मौत तक चलता रहता है, जब मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए एक बार फिर किसी की जेब भरनी पड़ती है। यह समझना मुश्किल है कि महान विचारो के साथ जन्म लेने वाले देश में आखिर इतना भ्रष्टाचार कैसे आ गया ?

हम माता पिता को इसका दोष नहीं दे सकते कि वे बपने बच्चे को सफल होता देखना चाहते है, लेकिन वे अपने बच्चों को सही कार्य करने की शिक्षा तो दे ही सकते हैं। उन्हें अपराध के समय शांत न रहने की नसीहत दी जा सकती है। इसके साथ ही शासन के संस्थानों में अपरिहार्य हो चुके सुधारों को लागू करके भी भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। द्रोपदी के सवाल इसलिए प्रशंसनीय थे, क्योंकि उसने राजधर्म पर जोर दिया था।
यह आश्चर्यजनक है कि हम अपनी शक्ति राजनीतिक वामपंथ और दक्षिणपंथ के विभाजन पर बहस करते हुए खर्च करते हैं, जबकि बहस सही और गलत के विभाजन पर होनी चाहिए । मनमोहन सिंह इसे समझते हैं। यही कारण है कि 2004 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने प्रशासनिक सुधार के साथ भ्रष्टाचार पर चोट करने का भरोसा व्यक्त किया था, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके।
सुधार कभी आसान नहीं होते-यह बिल्कुल कुरूक्षेत्र में युद्व करने के सामान होता है, फिर भी यह करना ही होता है। हमारे शासक यदि अभी भी सक्रियता दिखाने से इनकार करते है तो उन्हें भी पतन के लिए तैयार रहना चाहिए। फ्रांस के शासकों ने भी जनता का विश्वास खो दिया था और 1789 में ऐसे ही पतन का शिकार हुए थे।

अतः प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने पद का उचित प्रयोग करते हुए देश में तेजी से फैल रही महंगाई और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए कोई क्रान्तिकारी फैसला करने की आवश्यकता हैं। जनता कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से महंगाई और भ्रष्टाचार की समस्या से जुझ रही है, सरकारी धन को लूटा जा रहा हैं। अगर सरकार जनता को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं दिला सकती तो उसे अपने शासन करने की पद्वति में सुधार लाने की आवश्यकता है। अगर कांग्रेस सरकार जल्द कोई कदम नहीं उठाती तो मनमोहन सरकार का पतन निश्चित है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने पद की मर्यादा रखते हुए अपने अनुभव और कार्यकुशलता का परिचय देते हुए कार्य का निर्वहन करना चाहिए। प्रधानमंत्री को दबाव में कार्य करने की अपनी शैली बदलनी होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में वे क्षमता हैं जो देश को इन मुसिबतों से बाहर निकाल सकते है बस उन्हे अपने फैसलें लेनें की दृढ़ता दिखानी होगी।