अनजाने रिश्ते का एहसास,
बयां करना मुश्किल था ।
दिल की बात को ,
लबों से कहना मुश्किल था ।।
वक्त के साथ चलते रहे हम ,
बदलते हालात के साथ बदलना मुश्किल था ।
खामोशियां फिसलती रही देर तक,
यूँ ही चुपचाप रहना मुश्किल था ।।
सब्र तो होता है कुछ पल का ,
जीवन भर इंतजार करना मुश्किल था ।
वो दूर रहती तो सहते हम ,
पास होते हुए दूर जाना मुश्किल था ।।
अनजाने रिश्ते का एहसास ,
बयां करना मुश्किल था ।।
Wednesday, November 4, 2009
अनसुलझे रिश्ते
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क्या बात अहि शिवशंकर जी. मज़ा आ गया....जवानी के दिन सर्दी की गुद्गुदाहट याद आ गयी...शुक्रिया....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर देखेये ज़रूर पधारियेगा...
avtarmeherbaba.blogspot.com
lifemazedar.blogspot.com
सस्नेह
आपका ही
चन्दर मेहेर
बहुत ही अच्छा एवं सराहनीय प्रयास,
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाकर अपने अमूल्य
विचार व्यक्त करें
यह एहसास जीवन में कभी न कभी हर किसी को होता है .
ReplyDeleteबढिया है
ReplyDeletegreat, wah! bakbak!
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