Wednesday, November 4, 2009

अनसुलझे रिश्ते

अनजाने रिश्ते का एहसास,
बयां करना मुश्किल था ।

दिल की बात को ,
लबों से कहना मुश्किल था ।।


वक्त के साथ चलते रहे हम ,
बदलते हालात के साथ बदलना मुश्किल था ।

खामोशियां फिसलती रही देर तक,
यूँ ही चुपचाप रहना मुश्किल था ।।


सब्र तो होता है कुछ पल का ,
जीवन भर इंतजार करना मुश्किल था ।

वो दूर रहती तो सहते हम ,
पास होते हुए दूर जाना मुश्किल था ।।

अनजाने रिश्ते का एहसास ,
बयां करना मुश्किल था ।।


5 comments:

  1. क्या बात अहि शिवशंकर जी. मज़ा आ गया....जवानी के दिन सर्दी की गुद्गुदाहट याद आ गयी...शुक्रिया....

    मेरे ब्लॉग पर देखेये ज़रूर पधारियेगा...
    avtarmeherbaba.blogspot.com
    lifemazedar.blogspot.com

    सस्नेह

    आपका ही
    चन्दर मेहेर

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्‍छा एवं सराहनीय प्रयास,
    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाकर अपने अमूल्य
    विचार व्यक्त करें

    ReplyDelete
  3. यह एहसास जीवन में कभी न कभी हर किसी को होता है .

    ReplyDelete
  4. great, wah! bakbak!

    ReplyDelete