पहरेदार का चोर हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण होता है। आखिरकार पहरेदार पर कौन पहरा दे ? प्रधानमंत्री देश के सार्वजनिक धन का न्यासी है, मंत्रीपरिषद उसी का विस्तार है। मुख्य सतर्कता आयुक्त पर अतिरिक्त सतर्कता की जिम्मेदारी है। सरकार को जवाबदेह बनाने की संसदीय शक्ति बड़ी है बावजूद इसके भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया । राष्ट्मण्डल खेलों में अरबों का खेल हुआ । 2 -जी स्पेक्ट्म घाटालों से देश भौचक हुआ। आदर्श सोसाइटी भी घोटाला का पर्याय बनी । चावल निर्यात घोटाला, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एलआईसी हाउसिंग सहित हर तरफ घोटालों की ही बाढ़ है। महंगाई, घोटालों के पंख लगाकर ही आसमान पहुंची हैं।
देश घोटालों के दलदल में है। सत्ताधीश छोड़ सब लुट रहे है। भ्रष्टाचार ही सत्यम है। आमजन हलकान हैं। यहां हर चीज बिकाउ है। राजनीति एक विचित्र उधोग है। थोड़ी पूंजी बड़ा व्यापार, कहीं भी, कभीं भी ।
विधायकी सांसदी के पार्टी टिकट के रेट हैं, मनमाफिक मंत्री बनाने के रेट हैं। सरकार गिराने बचाने, सदन में वोट देने, सदन त्याग करने के पुरस्कार हैं। केन्द्र सरकार तमाम घोटालों के घेरे में है। स्पष्टीकरण काम नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से
सरकार की नींद हराम है। जनता में थू-थू हो रही है। सो सरकार एक नए लोकपाल विधेयक की तैयारी कर रही है।
विद्वान प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह कई अंतर्विरोधों के शिकार हैं। वह सरल ह्दय गैरराजनीतिक व्यक्ति हैं, लेकिन देश के राजप्रमुख हैं।
वह संवैधानिक दृष्टि से संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन वस्तुतः वह सोनिया गांधी के प्रति उत्तरदायी हैं। वह मंत्रिपरिषद के प्रधान हैं, लेकिन मंत्रिगण उनकी बात नहीं सुनते। वह स्वयं ईमानदार हैं, लेकिन सरकारी भ्रष्टाचार पर कोई कारवाई नहीं कर सकते। वह अंतरराष्टीय ख्याति के अर्थशास्त्री हैं, लेकिन महंगाई जैसी आर्थिक समस्या के सामने ही उन्होंने हथियार डाले हैं। भ्रष्टाचार ने सरकार की छवि को बट्टा लगाया है। भ्रष्टाचार के चलते अंतरराष्टीय पर देश की छवि धूमिल हुई है, और सरकार को शर्मिंदा होना पड़ा है।
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के शासन काल में इतने बड़े- बड़े घोटालें हो गये और प्रतिष्ठित उद्योगपति रतन टाटा ने भी हमारे प्रधानमंत्री को बहुत ईमानदार करार दिया और कहा कि उनको परेशान नहीं करना चाहिए। ऐसे बहुत से प्रतिष्ठित लोग मिल जाएगे जो डॉ मनमोहन सिंह को ईमानदार और साफ सुथरे छवि वाले इंसान बताते हैं।
भारत जैसे विशालकाय देश में इतने बड़े तौर पर घोटालें हो रहे हैं और इन घोटालो में मंत्रीमण्डल के ही नेतागण शामिल हैं।
.प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अपने मंत्रिमंडल में शामिल भ्रष्ट नेताओं पर भी शक्ति नहीं देखा पा रहे है। कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त उन नेताओं पर उचित कारवायी न कर भ्रष्टाचारियों को श्रय दे रही है। तभी तो कॉमनवेल्थ और 2-जी स्पेक्ट्म मामले में शामिल अपराधियों पर कारवायी करने में इतना देर लगा जब तक अपराधी अधिकांश सबूत मिटा चुके थे।
भ्रष्टाचारियो को श्रय देना, अपराधियों को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें सुविधाएं देना क्या ये ईमानदारी है ?
डॉ मनमोहन सिंह नाम मात्र के प्रधानमंत्री बन कर सारे भ्रष्टाचार को देखते हुए किंकर्तव्यविमुख की तरह पड़े है। अपराधों को
देखते हुए भी कुछ न करने का साहस दिखाना भी एक अपराध है। अगर मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री कि नहीं सुनी जाती तो वे क्यो उस पद पर बने हुए है। उस पद पर बने रहकर वे अपनी छवी खराब कर रहे है। अगर वे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे है तो उन्हे अपने पद से स्वेच्छा से त्याग पत्र दे देना चाहिए, जो देश हित के लिए उचित होगा ।
डॉ मनमोहन सिंह के पहले शासन काल में विपक्ष के नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह को कठपुतली सरकार कहकर ये कहां था कि भारत के इतिहास में मनमोहन सिंह सबसे कमजोर प्रधानमंत्री है। उनकी कही बात आज सच साबित हो रही है। जनता को ये एहसास हो गया है कि मनमोहन सिंह को मोहरा बनाकर शासन की बागडोर कोई और अपने हाथो में लेकर इन भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर उन्हे बढ़ावा दे रहा है, और देश की छवि को नुकसान पहुंचा रहा हैं।
लोगों के सामने तो मनमोहन को सत्ता सौंप कर त्याग की मूर्ति बन गई सोनिया लेकिन इन भ्रष्टाचार में उनकी सहमति के बिना इतने बड़े घोटालों को अन्जाम ही नहीं दिया जा सकता था।
डॉं मनमोहन सिंह भी अब ईमानदार के श्रेणी में नहीं आते उनके शासन काल में जनता के पैसें को स्वीश बैंक में काले धन के रूप में सजाकर रखा जा रहा है और सरकार देखते हुए भी उसके खिलाफ कोई निर्णय नहीं ले रही है। अगर घुस लेना और देना अपराध है तो क्या भ्रष्टाचारियों के साथ मिलकर मंत्रिमंडल में बने रहकर उनके हर कार्य में सहायता करना अपराध नहीं है ?
2-जी घेटालों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की समस्याएं फिलहाल खत्म नहीं होने वाली हैं। कुछ मंत्री अपने बयान से इस मामले को दूसरे दिशा में मोड़ना चाहते है, जो अब संम्भव नहीं । कपिल सिब्बल सोचते हैं कि वह अपने इस चतुराई भरे तर्क से मनमोहन सिंह का बचाव कर लेगे कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में जिस बात का इशारा किया गया है
वैसा कुछ नहीं है और देश का धन किसी ने नहीं लूटा हैं। इस तरह कपिल सिब्बल ने मामलें को और उलझानें का काम किया, जिस कारण सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा कि वह न्यायिक जांच में हस्तक्षेप कर रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस बारे में 21 जनवरी को जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की न्यायिक पीठ ने कहा कि मंत्री महोदय को अनिवार्य रूप से अपने उत्तरदायित्व के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए ।
वास्तव में सरकार द्वारा चुप्पी साधे रखना ही 2 जी मामले में वर्तमान राजनीतिक संकट की मूल वजह बना। यही वह कारण है कि अभी तक गतिरोध बना हुआ है और संसद का एक पूरा सत्र हंगामें की भेंट चढ़ गया । ईमानदार प्रधानमंत्री पर अब भारतीय जनता का गुस्सा तेजी से बढ़ रहा है, जो संभवतः हाल के भारतीय इतिहास में सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के मुखिया के पद पर बैठे हुए हैं।
अंधकारपूर्ण वर्तमान हालात में देश की जनता खिन्न और निराश है और वह अब एक ऐसे ईमानदार व्यक्ति से छुटकारा पाना चाहती है जो अपने आस पास के बेईमान लोगों पर अंकुश नहीं लगा सका । यह वही मनमोहन सिंह हैं जिन्हे एक समय जनता एक निःस्वार्थ और नैतिक व्यक्ति के रूप में देखती थी। कुछ ऐसे ही महाभारत में भीष्म भी थे। वह तब भी मौन रहे जब द्रौपदी का चीर हरण किया जा रहा था । दुःशासन द्वारा अपमानित होने के कारण द्रौपदी क्रुद्व हुई और उसने शासकों के धर्म के बारे में सवाल उठाए, लेकिन तब सभागार में बैठे राजपरिवार के किसी भी सदस्य ने उसे उत्तर नहीं दिया और हर कोई शांत बना रहा।
उस समय विदुर ने तिरस्कार भाव से मौन की अनैतिकता का सवाल उठाया और सभागार में बैठे लोगो को लताड़ लगाई। उस समय विदुर ने किसी अपराध के घटित होने पर आधा दण्ड दोषी को दिए जाने, एक तिहाई दंड सहयोगियों अथवा इस तरह के कृत्य में शामिल होनें वालों के लिए और शेष एक तिहाई दंड मौन रहने वालों के लिए बताया था। 2 जी घोटाले में हमारे प्रधानमंत्री की चुप्पी बहुत गहरे तक हमें मथने वाली अथवा परेशान करने वाली है।
सवाल यह है कि आवंटन नीति पर आपति उठाने के बाद प्रधानमंत्री चुप क्यों हो गए ? यही वह सवाल जिसका उत्तर भारतीय जनता अब जानना चाहती है। इस संकट में प्रधानमंत्री के मौन के अतिरिक्त एक अन्य विचलित करने वाला पहलू भी है। सफलता के संदर्भ में हमारी धारणा भी दांव पर लगी हुई है। हालांकि हम हमेशा से अपनी एक भद्दी सच्चाई को जानते रहे हैं। भारत में भ्रष्टाचार बच्चे के जन्म लेते ही आरंभ हो जाता है। आपको जन्म प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए किसी को रिश्वत देनी पड़ती है।
यह सिलसिला उसके मौत तक चलता रहता है, जब मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए एक बार फिर किसी की जेब भरनी पड़ती है। यह समझना मुश्किल है कि महान विचारो के साथ जन्म लेने वाले देश में आखिर इतना भ्रष्टाचार कैसे आ गया ?
हम माता पिता को इसका दोष नहीं दे सकते कि वे बपने बच्चे को सफल होता देखना चाहते है, लेकिन वे अपने बच्चों को सही कार्य करने की शिक्षा तो दे ही सकते हैं। उन्हें अपराध के समय शांत न रहने की नसीहत दी जा सकती है। इसके साथ ही शासन के संस्थानों में अपरिहार्य हो चुके सुधारों को लागू करके भी भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है। द्रोपदी के सवाल इसलिए प्रशंसनीय थे, क्योंकि उसने राजधर्म पर जोर दिया था।
यह आश्चर्यजनक है कि हम अपनी शक्ति राजनीतिक वामपंथ और दक्षिणपंथ के विभाजन पर बहस करते हुए खर्च करते हैं, जबकि बहस सही और गलत के विभाजन पर होनी चाहिए । मनमोहन सिंह इसे समझते हैं। यही कारण है कि 2004 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने प्रशासनिक सुधार के साथ भ्रष्टाचार पर चोट करने का भरोसा व्यक्त किया था, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके।
सुधार कभी आसान नहीं होते-यह बिल्कुल कुरूक्षेत्र में युद्व करने के सामान होता है, फिर भी यह करना ही होता है। हमारे शासक यदि अभी भी सक्रियता दिखाने से इनकार करते है तो उन्हें भी पतन के लिए तैयार रहना चाहिए। फ्रांस के शासकों ने भी जनता का विश्वास खो दिया था और 1789 में ऐसे ही पतन का शिकार हुए थे।
अतः प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने पद का उचित प्रयोग करते हुए देश में तेजी से फैल रही महंगाई और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए कोई क्रान्तिकारी फैसला करने की आवश्यकता हैं। जनता कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से महंगाई और भ्रष्टाचार की समस्या से जुझ रही है, सरकारी धन को लूटा जा रहा हैं। अगर सरकार जनता को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं दिला सकती तो उसे अपने शासन करने की पद्वति में सुधार लाने की आवश्यकता है। अगर कांग्रेस सरकार जल्द कोई कदम नहीं उठाती तो मनमोहन सरकार का पतन निश्चित है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने पद की मर्यादा रखते हुए अपने अनुभव और कार्यकुशलता का परिचय देते हुए कार्य का निर्वहन करना चाहिए। प्रधानमंत्री को दबाव में कार्य करने की अपनी शैली बदलनी होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह में वे क्षमता हैं जो देश को इन मुसिबतों से बाहर निकाल सकते है बस उन्हे अपने फैसलें लेनें की दृढ़ता दिखानी होगी।