Friday, January 21, 2011

आतंकवाद की बर्बरता


आज विश्व, आतंकवाद के जाल मे बुरी तरह फसा हुआ है। न केवल एक देश ,बल्कि समस्त विश्व इसके क्रुर , निर्दयी एवं बर्बरता मे छटपटा रहा है। आतंक,लूटपाट,अपहरण और कत्लेआम से सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ है।आतंकवाद प्रतिदिन प्रातः बम के धमाके से प्रारंभ होता है और वीभत्स एंव ह्दयविदारक नरसंहार को देख अट्टाहास करता है,उत्सव मनाता है। आतंक का यह अंतहीन सिलसिला कहीं भी थमता नजर नहीं आता है। समाधान के स्वर विकट आतंक के इस दौर में उभरते भी हैं,तव भी आशा की कोई किरण नजर नहीं आती हैं।

यह आतंकवाद विकृत एवं वीभत्स मानसिकता का परिचायक है।आज की परिस्थिति में किसी भी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हिंसक ,अलोकतांत्रिक ,अमानवीय तथा अवैध तरीकों का प्रयोग कर मनुष्य में आतंक फैलाना ही आतंकवाद है,परंतु यह इन बिंदुओ में ही सिमटा हुआ नहीं है। आज इसे अनेक रूपों में देखा जा सकता है। कुछ संगठनो द्वारा भी यह जन्म लेता है और सत्ताधारियों की कोख से भी।यह कहीं धार्मिक संगठनों की हिंसक गतिविधियों के रूप में, तो कहीं धार्मिक संगठनो की हिंसक गतिविधियों के रूप में, तो कहीं उग्र राजनीतिक विचारधाराओं के बीच हथियारबंद संघर्ष के रूप में तथा कहीं क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर मुखर हुए हिंसक गिरोहों के रूप में पनपता है।आतंकवाद भाषाई ,सांस्कृतिक,धार्मिक व आर्थिक विषमताओं की प्रतिक्रियास्वरूप जन्मे संगठनों के स्वरूपों में भी परिलक्षित होता है।

आतंकवाद का इतिहास कोई नया नहीं है। प्राचिनकाल मे भी एक मजबूत कबिला,छोटे कबिलो वाले पर आक्रमण कर हिंसा फैलाते थे।लेकिन उस समय विजेताओ द्ारा केवल आतंक मचाना मात्र था कोई विशेष उददेश्य‌‍‍ न था,लेकिन वर्तमान मे हिंसा फैला कर कई अपने लाभ के कार्य किये जाते है।

आतंकवादी हिंसा व हत्या को पैदा करने के लिए आधुनिक युग की दो परस्पर विरोधी विचारधाराओ की भूमिका महत्वपूर्ण है। ये हैं समाजवादी दर्शन तथा पूंजीवादी लोकतंत्र। संसार विचारधाराओ के दो खेमो मे बंट गया है। समाजवादी पक्ष ने प्रचार एवं शक्ति के सहारे विश्व भर में अपने आपको फैलाना चाहा। दूसरी ओर पूंजीवादी लोकतंत्र ने उसके बढते कदमो को रोकने के लिए बल प्रयोग का सहारा लिया। शीतयुध्द इसी का परिणाम है।शस्त्रों की होड एवं उसके भारी उत्पादन के पीछे यही मुख्य कारण है।
हथियारो की इसी सर्वनाशी होड ने उग्रवाद को एक नई पहचान दी,जो आज हिंसा ,लूटपाट मचाकर समस्त विश्व में फैल गया है।
दूसरी ओर समाजवादी विचारधारा के विरूध्द पूंजीवादी खेमे की खडी की गई गुप्तचर एजेंसियां तथा अन्य विध्वंसक शक्तियां भी पूर्णरूपेण सक्रिय हो गई ।

आतंकवाद की ये खुली आंधी आज विश्व के हर कोने मे फैली हुई है। खासकर अपना देश तो इस आग में हिचकोले खाता नजर आ रहा है। विश्व के तमाम देशों में आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं और भीषण लूटपाट कर रहे है।अपना देश तो पिछले कई सालो से आतंकवाद के चपेट में है। उत्तरपूर्वी भारत,बिहार,आन्ध्रप्रदेश तथा छत्तीसगढ इस ज्वाला मे जल रहे है। पंजाब में उग्रवादियो
के खूनी खेल के थमते ही कश्मीर उस आाग मे धधक उठा।
अब तो पहले कभी धरती को स्वर्ग कही जाने वाली इस वादी में प्रतिदिन बम के धमाकों के बीच क्षत विक्षत फैले मानव अंग ,बिलखती आावाजे सामान्य सी बात हो गई है।

आतंकवाद किसी तरह का हो,आतंकवादी कोई भी हो,पर वे इन्सान और इन्सानियत के दुश्मन हैं। बेगुनाहो के खून से यदि कुछ मिल भी जाए,तो वह कभी भी सुखद नहीं होता ।आतंकवाद की समस्या से निपटने का समाधान राजनैतिक से कहीं ज्यादा सांस्कृतिक है।सांस्कृतिक संवेदना ही आतंकवाद से बंजर होती जा रही धरती और देश को फिर से हरा भरा एवं खुशहाल बना सकती है।
















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