बीते दिनो ही बोफोर्स दलाली मामले मे सीबीआइ ने जिस तरह ओट्टावियो क्वात्रोची के खिलाफ मामला बंद करने की दलील पेश की है वो लोगो के समझ से परे है । आयकर न्यायाधिकरण ने जो प्रमाण पेश किए है वो किसी आकलन का हिस्सा नहीं है बल्कि उसके आदर्श के उल्लेखनीय बिन्दु है । एसे प्रमाणो के बावजूद सीबीआइ यह दलील कैसे दे सकती है कि आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश मे कुछ भी नया नही है ।
इस मामले मे सीबीआइ की तरफ से मुकदमे की पैरवी कर रहे अतिरिक्त साँलीसीटर जनरल ने जिस तरह ये कहा कि उन्हें न्यायाधिकरण के ताजा फैसले के सन्दर्भ मे सरकार के तरफ से कोई निर्देश नही मिले , इससे ये संदेह और गहराता है की जांच एजेंसी और शासन तंत्र ,दोनो मिलकर क्वात्रोची के मामले को दफन करने की तैयारी कर रहे है ।सीबीआइ की दलील से आदालत जिस नतीजे पर पहुँचे, आम जनता इस नतीजे पर पहँचने मे विवश है कि यह जांच एजेंसी केंद्रीय सत्ता की कठपुतली बन कर रह गई है ।
इसी तरह एक और बडा प्रकरण राष्टमंडल खेलो मे हुए घपलो और घोटालो का है ।राष्टमंडल खेल समिति के महासचिव ललित भनोट समेत कुछ लोगो कि गिरफ्तारी हो जाती है,लेकिन पूरे आयोजन के लिए जिम्मेदार सुरेश कलमाणी से पूछताछ के लिए सीबीआइ को समय लेना पड रहा है ।ये सीबीआइ और सरकार की ऐसे भ्रष्टाचारी पर कुछ ज्यादा ही दरियादिली क्या समझने को मजबूर करता है ? कालमाणी के घर छापे मारने मे देरी कि गई जिससे उन्हे सबूतो को छिपाने और नष्ट करने का समय मिल गया ।
इसी तरह ए॰ राजा के घर भी छापा मारने मे देरी की गई । यह स्पष्ट है की ये अलिखित विशेषाधिकार बन गया है कि बडे लोगो के खिलाफ नरमी बरती जाए और उन्हे उनकी सुविधा के माकूल बचने का अवसर दिया जाए।कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है की आज सीबीआइ एक बंधक के रूप मे कार्य कर रही है जो बहुत ही निन्दनीय है । मेरे विचार से भ्रष्टाचार के मामलो की जांच कर रही वर्तमान सीबीआइ अक्षम है । यहाँ हमे इन बातो का ध्यान रखना होगा कि भ्रष्टाचार मामले मे कौन-कौन लोग जिम्मेदार है ? अधिकांशतः ऐसे बडे भ्रष्टाचार बडे लोग ही करते हे जो बडे पदो पर या बडे राजनेता होते है,जो प्रत्यक्ष या अप्रत्क्ष रुप से सत्ता से जुडे होते हे ।
ऐसे मे सरकार के नियंत्रण मे काम करने वाली कोई एजेंसी सरकार से प्रभावित हुए बिना कैसे कार्य कर सकती है ।सीबीआइ किसी मामले कि स्वतः जांच नही कर सकती । ऐसे मे उन्हे सरकार से अनुमति लेनी होती है और यदि मिलती भी है तो काफी देर से जिससे अपेक्षीत परिणाम नही निकल पाता । सीबीआइ की विश्वसनीयता रखने और अधिक प्रभावी बनाने के लिए जरुरी है की इसे चुनाव आयोग से भी ज्यादा स्वायत्तता मिले ।इसे किसी मामले की स्वतः जांच का अधिकार हो और इसकी कारवाई मे राजनीतिक दखलंदाजी न हो । तभी जाकर हम इस जांच एजेंसी को अधिक प्रभावी बना कर निष्पक्ष जांच की उम्मीद कर सकते हे ।
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